अपराध कानून में बदलाव का संकेत स्वागत योग्य

 



अक्सर खबरों में आता है 'दुष्कर्म पीड़िता की तारीख पर कोर्ट जाते वक्त हत्या (या फिर दुष्कर्म), 'नाराज अपराधी ने गवाह को गोली मारी' या अपराधी के डर से गवाह पूर्व-बयान से मुकरे'। नतीजा यह होता है कि गवाहों की हिम्मत नहीं पड़ती या दुष्कर्म के बाद भी दबंग के डर से रिपोर्ट नहीं लिखाई जाती। अगर केस अदालत गया भी तो पुलिस सही सबूत नहीं पेश करती और अपराधी समाज को ठेंगा दिखाकर फिर अपराध करने की हिम्मत पा जाता है, जबकि सामान्य जन अपराध के शिकार होने के बावजूद घर में दुबक जाते हैं। किसी भी सभ्य समाज के लिए यह भयावह स्थिति है।


भारत में हत्या, हत्या का प्रयास, दुष्कर्म या लूट सरीखे संगीन अपराधों में तीन में मात्र एक अभियुक्त को ही सजा मिलती है। दुष्कर्म में तो मात्र 25 प्रतिशत ही सजा पाते हैं यानी शेष फिर समाज में यही सब करने के लिए छुट्टे सांड बने घूमते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआर&डी) के 29वें स्थापना दिवस पर बोलते हुए इस भयावह स्थिति का संज्ञान लिया और संकेत दिए कि भारतीय दंड संहिता और अपराध प्रक्रिया संहिता में बदलाव किए जाएंगे और पुलिस को अपराध अनुसंधान में मददगार अपराध-विज्ञान की ज्यादा से ज्यादा नई तकनीकियों का इस्तेमाल करना सिखाया जाएगा। जांच-कर्ता पुलिस को प्रस्तावित कानून के तहत संगीन मामलों में नई तकनीक का प्रयोग अनिवार्य किया जाएगा।


'थर्ड डिग्री तरीके अपनाकर अपराध कबूल करने के दिन लद गए' शाह ने कहा। उनकी मंशा तो काफी सामयिक और अपेक्षित थी लेकिन मंत्री ने अपने भाषण में 'पुलिस सुधार' और 'पुलिसिंग में सुधार' के बीच स्पष्ट तौर पर कहा कि कानून में यह बदलाव बेहतर पुलिसिंग के लिए है, न कि 'पुलिस सुधार' के लिए। शायद राजनीतिक वर्ग को 2006 में प्रकाश सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिमान स्वरूप दिए गए फैसले पर अमल करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उस फैसले में थानेदार से लेकर डीजी तक के पदों के लिए निश्चित अवधि का कार्यकाल तय किया गया था और साथ ही इनकी नियुक्ति कई स्तर की समितियों के हाथ सौंपने का आदेश था। सत्ता में बैठे किसी भी राज्य सरकार  ने 13 साल बाद भी इसे लागू नहीं होने दिया, क्योंकि पुलिस का इस्तेमाल सत्तावर्ग विरोधियों की प्रताड़ना और अपने अपराधी 'सेवकों' को बचाने में करता आया है। बहरहाल, गृहमंत्री का प्रयास सराहनीय है।